
hilljatra
हिलजात्रा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में मनाया जाने वाला एक अनूठा लोक महोत्सव है, जिसे मुख्य रूप से क्षेत्रीय खेती-बाड़ी और पौराणिक संस्कृति से जोड़कर देखा जाता है। यह पर्व खूंट, अस्कोट, और सोर घाटी में विशेष रूप से मनाया जाता है और स्थानीय कुमाऊंनी समुदाय के बीच अत्यधिक लोकप्रिय है।
हिलजात्रा का ऐतिहासिक महत्व
ऐसा माना जाता है कि हिलजात्रा की परंपरा नेपाल से आई थी। कहा जाता है कि अस्कोट के राजा ने नेपाल में यह उत्सव देखा और इसे अपने राज्य में भी प्रचलित किया। समय के साथ, यह स्थानीय कृषि उत्सव के रूप में विकसित हुआ और इसमें लोकनाट्य, नृत्य और मुखौटा नृत्य का समावेश हुआ।
हिलजात्रा का स्वरूप
🔸 मुखौटा नृत्य: इस उत्सव की सबसे प्रमुख विशेषता है मुखौटे पहनकर नृत्य करना। विभिन्न देवी-देवताओं, पशु-पक्षियों और पौराणिक पात्रों के मुखौटे पहने कलाकार लोककथाओं का मंचन करते हैं।
🔸 कृषि से जुड़ा आयोजन: इस त्योहार को धान रोपाई के उत्सव के रूप में भी देखा जाता है। यह किसानों के लिए अच्छी फसल और समृद्धि की प्रार्थना का अवसर होता है।
🔸 रंगारंग प्रस्तुतियाँ: इस पर्व के दौरान रामलीला, लोकनृत्य, और पारंपरिक संगीत का आयोजन किया जाता है।
🔸 दैत्य नृत्य: त्योहार में दैत्य, भालू, हिरन और अन्य पौराणिक पात्रों के वेश में नर्तक प्रस्तुति देते हैं, जिससे एक अलौकिक माहौल बनता है।
आज के दौर में हिलजात्रा
समय के साथ, हिलजात्रा अब सिर्फ खेती से जुड़ा उत्सव न रहकर एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में प्रसिद्ध हो चुका है। हर साल अगस्त-सितंबर में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और इसमें स्थानीय कलाकारों, पर्यटकों और ग्रामीणों की बड़ी भागीदारी होती है।
हिलजात्रा का महत्व
✅ कृषि और परंपरा का संगम
✅ लोककला, लोकनृत्य और मुखौटा नाट्य का संरक्षण
✅ स्थानीय संस्कृति और परंपराओं को जीवंत बनाए रखना
✅ पर्यटन को बढ़ावा देना
हिलजात्रा न सिर्फ एक पर्व है, बल्कि उत्तराखंड की लोकसंस्कृति का अभिन्न अंग भी है, जो समाज, कला, और कृषि जीवन को जोड़ने का काम करता है। 🎭🌿