
🌿 प्रकृति से जुड़ा हर त्योहार
उत्तराखंड के पर्व-त्योहार केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं, बल्कि ये प्रकृति के प्रति आभार और आध्यात्मिक संतुलन का प्रतीक हैं। यहां के पर्वों में:
- फूलों की खुशबू होती है,
- पत्तों की हरियाली होती है,
- और लोक गीतों की मधुरता।
🌸 चैत्र संक्रांति का दिन – बच्चों की टोली और फूलों की पूजा
चैत्र संक्रांति के दिन गांव के छोटे-छोटे बच्चे सुबह-सुबह जंगलों की ओर निकल पड़ते हैं। वे पेड़ों से नाशपाती, खुबानी (एप्रिकॉट), पुलम (प्लम) और जंगली फूल तोड़ते हैं। फिर:
- पत्तों, नारियल, फूलों और चावल से सजी थाल या रिंगाल की टोकरियाँ तैयार की जाती हैं।
- बच्चे गांव के हर घर के दरवाज़े पर जाकर पूजा करते हुए लोक गीत गाते हैं।
यह पूजा सिर्फ धार्मिक नहीं होती, बल्कि प्रकृति का धन्यवाद करने की एक सांस्कृतिक परंपरा भी होती है।
🎶 गीतों में आता है ऋतुरंग और चैत्यभाव
चैत्र संक्रांति के साथ ही होलिक रंगों की जगह लोग ऋतुरंग और चैत्य गीतों में डूबने लगते हैं। गाँव के बाज़ी, औली और ढोली (स्थानीय ढोल वादक) हर घर के आँगन में ढोल बजाते हुए चैत्य गीत गाते हैं।
घर के मुखिया उन्हें सम्मानपूर्वक धान, आटा, अनाज या दक्षिणा देते हैं। यह केवल लेन-देन नहीं, बल्कि लोक कलाकारों के लिए प्रेम और आदर का प्रतीक होता है।
🌺 बंसत का स्वागत – बुरांश और आड़ू के फूलों से ढके पहाड़
जब बंसत ऋतु आती है, तब पूरा पहाड़ बुरांश के लाल फूलों और आड़ू-खुबानी के गुलाबी-सफेद रंगों से सज़ जाता है। ऐसे में चैत्र संक्रांति पर बच्चे प्रकृति का धन्यवाद करते हैं — इस अनमोल उपहार के लिए।
🙏 निष्कर्ष – प्रकृति, पर्व और परंपरा का अद्वितीय संगम
उत्तराखंड की चैत्र संक्रांति केवल एक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ आत्मीय संबंध की कहानी है। यह उस भावना को दर्शाता है जिसमें पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि कृतज्ञता, भक्ति और लोक संस्कृति की अभिव्यक्ति बन जाते हैं।