
Haat Kalika Mandir Pithoragarh
हाट कालिका मंदिर – महाकाली शक्तिपीठ
स्थान एवं महत्व
हाट कालिका मंदिर उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में गंगोलीहाट नामक स्थान पर स्थित है। यह मंदिर देवी महाकाली को समर्पित एक प्राचीन शक्तिपीठ है, जो अपने ऐतिहासिक, पौराणिक महत्व और चमत्कारी गाथाओं के लिए प्रसिद्ध है। पिथौरागढ़ शहर से लगभग 77 किलोमीटर दूर स्थित यह मंदिर तंत्र साधना और भक्तिपूर्वक पूजन के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
पौराणिक मान्यता एवं ऐतिहासिक महत्व
देवी पुराण और देवी भागवत के अनुसार, महाकाली ने असुरों के राजा महिषासुर, चंड-मुंड, शुंभ-निशुंभ सहित कई भयंकर राक्षसों का वध किया। इस विनाशकारी युद्ध के बाद भी देवी का रौद्र रूप शांत नहीं हुआ, और उन्होंने महाभयानक, धधकती ज्वाला का रूप धारण कर तांडव मचा दिया।
इस विकराल रूप में देवी महाकाल का रूप धारण कर देवदार के वृक्ष पर चढ़ गईं और जागनाथ तथा भुवनेश्वर नाथ को आवाज देने लगीं। कहा जाता है कि जिन लोगों के कानों में यह दिव्य ध्वनि पड़ती थी, वे अगली सुबह तक यमलोक पहुंच जाते थे।
आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा शक्तिपीठ स्थापना
छठी शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य जब इस स्थान पर पहुंचे, तो उन्होंने देवी महाकाली के इस उग्र रूप को शांत करने के लिए विशेष मंत्रोच्चार किए। देवी की ऊर्जा को नियंत्रित करने के लिए उन्होंने लोहे के सात विशाल भदेलों (शक्ति स्तंभों) से शक्ति का कीलन कर इसे प्रतिष्ठित किया। इसके बाद देवी की उपासना एक नियमित प्रक्रिया के रूप में शुरू हुई।
मंदिर की विशेषताएँ और धार्मिक अनुष्ठान
- निरंतर हवन-यज्ञ:
- यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां अमावस्या और पूर्णिमा दोनों ही दिनों में हवन और यज्ञ का आयोजन होता है।
- शतचंडी महायज्ञ, सहस्त्र चंडी यज्ञ और सहस्रघट पूजा यहां नियमित रूप से संपन्न होते हैं।
- जब मंदिर में शतचंडी महायज्ञ होता है, तब इस स्थान की दिव्यता देखते ही बनती है।
- नरबलि की परंपरा और पशु बलि:
- प्राचीन समय में इस मंदिर में नरबलि की प्रथा प्रचलित थी, जिसे बाद में पशु बलि से प्रतिस्थापित किया गया।
- 108 ब्राह्मणों द्वारा शक्ति पाठ:
- यहां 108 ब्राह्मणों द्वारा प्रतिदिन देवी शक्ति का पाठ किया जाता है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है मानो समस्त देवता स्वयं इस स्थान पर निवास कर रहे हों।
- पुजारियों की परंपरा:
- मंदिर के पुजारी स्थानीय रावल उपजाति के लोग होते हैं, जो बारी-बारी से अपनी सेवा देते हैं।
- अर्ग्रोन गांव के पंत लोग विशेष अनुष्ठानों का संचालन करते हैं, और उनकी अनुपस्थिति में हाट गांव के पांडेय इस दायित्व को निभाते हैं।
मंदिर की त्रिभुजाकार संरचना और तंत्र साधना
यह मंदिर सरयू और रामगंगा नदियों के मध्य गंगावली की सुनहरी घाटी में स्थित है। मंदिर की बनावट त्रिभुजाकार है, जिसे तंत्र शास्त्र में माता का साक्षात् यंत्र माना जाता है। यहां श्रद्धालु विभिन्न इच्छाओं की पूर्ति के लिए आते हैं:
- धनहीन लोग धन की कामना से
- पुत्रहीन लोग पुत्र प्राप्ति की इच्छा से
- सम्पत्तिहीन लोग समृद्धि की इच्छा से
- मोक्ष चाहने वाले सांसारिक बंधनों से मुक्ति के लिए
मंदिर से जुड़े चमत्कारी प्रसंग
- भारतीय सैनिकों की विशेष आस्था
- द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, भारतीय सैनिकों से भरा एक जहाज समुद्र में डूबने लगा।
- जहाज में मौजूद एक स्थानीय सैनिक ने माँ हाट कालिका का स्मरण किया, जिससे जहाज बच गया।
- इसके बाद से भारतीय सैनिकों की इस मंदिर में विशेष आस्था बनी हुई है।
- महाकवि कालिदास की तपस्थली
- किंवदंतियों के अनुसार, यह स्थान संस्कृत के महान कवि कालिदास की तपोभूमि भी रहा है।
- रात में देवी कालिका का डोला
- मान्यता है कि देवी कालिका का डोला रात में चलता है, और इसके साथ आंण और बांण नामक दिव्य गणों की सेना भी चलती है।
- कहते हैं, यदि कोई व्यक्ति इस डोले को छू ले, तो उसे दिव्य वरदान प्राप्त होता है।
- यह भी कहा जाता है कि हाट गांव के चौधरियों द्वारा देवी को चढ़ाई गई 22 नाली भूमि पर यह डोला चलता है।
- महाकाली का बिस्तर और उनकी उपस्थिति
- महाआरती के बाद माँ महाकाली का बिस्तर लगाया जाता है।
- सुबह देखा जाता है कि बिस्तर में सलवटें पड़ी होती हैं, जो यह दर्शाता है कि मानो स्वयं महाकाली यहाँ विश्राम करके गई हों।
निष्कर्ष
हाट कालिका मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि शक्ति उपासना और तंत्र साधना का एक प्रमुख केंद्र भी है। यहाँ हर श्रद्धालु को आध्यात्मिक शांति और सिद्धि प्राप्त होती है। इस स्थान की चमत्कारी गाथाएँ, देवी की कृपा और यहाँ होने वाले विशेष अनुष्ठान इसे भारत के सबसे महत्वपूर्ण शक्तिपीठों में से एक बनाते हैं।
🚩 जय माँ हाट कालिका! 🚩